रविवार, 20 मई 2018

मैं विकास हूँ

मैं विकास हूँ
नाम से विकास हूँ
पर बौद्धिक विकास नही

क्यों.....

बचपन में बुजर्गों के पास बैठता था
अच्छी बातें सुन, अच्छाई डालता गया

फिर स्कूल गया, किताबो में भी कुछ ऐसा ही था
अच्छाई की जीत होती है झूठ की हार होती है

स्कूल हुआ, कॉलेज हुआ अब वो वक़्त आया
जब मैने पहली बार,..... जिंदगी हो था छुआ

कर्म करने को, मेने जैसे ही पहला कदम बढ़ाया
कर्म से पहले, जी हजूरी ने मुझे थप्पड़ लगाया

उम्दा और बेहतरीन है हुनर तुम्हारा, जो चलता नहीं
पकड़ बनाओ, झूठ पर....सच है कहीं बिकता नहीं

जो बिक जाता है वो ही बाज़ार में टिक जाता है
उसूलों और सिद्धांतों को, किताबों में बन्द कर दिया

पेट की भूख और काया के शौक ही नज़र आते है
सच की राह चलने वालों के बच्चे भूख से बिलबिलाते है

ये तो सबक थे व्यापार के, फिर रिशतें मिले प्यार के
सुहावने थे, मिश्री भी फ़ीकी पड़ गई उनके अंदाज से

क़ायदे सुविधा से बनाए, दिल किया तो भगवान समझा
उसी दिल ने ली करवट तो तीखें खँजर सीने में चुभाये

वाह री दुनियां, कब्र बना दी , जिन्दा इंसानों की
ज़रूरत से बने व्यापार, जरूरत से किया प्यार

विकास तो मखौल हो गया...भीड़ की दौड़ में

अच्छाई से मेरा भी दामन छुड़ा दो
जिन्दा कंकालों से मेरा भी रिश्ता बना दो

#जसजसजककसब्सब्जसजसम्सम्सब्ज़बजकजज़्सब

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