अक्स तलाशती ज़िन्दगी ओझल हो गई है समस्याओ के काले बादलों में, कोई फुरसत का लम्हें की गुजारिश कर भी लूँ। कोशिशो के बावजूद फिर उसी चोराहे पर मिलता हूँ जहाँ रास्ते तो बहुत है, मगर मंजिल कहाँ होगी मालूम नहीं। हर जगह बेशक गलत हो सकता हूँ में, मगर मेरा दिल भी गलत है ये मालूम ना था। अक्सर सुना है दिल जो कहे वो किया कीजिये। कम्बखत भग दौड़ के ज़माने में हमारा तो दिल इम्तिहान में हार गया। मुझे किसी धर्म/जाति से कोई सारोकार नहीं। मेरी धड़कने एक ही भाषा की मुरीद है जो दिल से छूकर गुजरती हो। जब वो दिल को छूने वाली लहर भी कोई धोखा होने का एहसास दे तो आप के अंदर कोई ज़िन्दगी बाकि नहीं रहती।
Sochta hoon ki har pal likhoon par likhne baithta hoon to wo pal hi gujar jata hai
सोमवार, 30 नवंबर 2015
रविवार, 8 नवंबर 2015
काव्य रस
काव्य मेरा रसहीन हो गया
जब से वो और भी हसीन हो गया
उसके लिए में ज़मीन
वो मेरा आस्मां हो गया
काव्य को मेरे हास्य जताता है
अपने रूप को सर्वोपरि दर्शाता है
जब से वो मेरे लिए अनमोल हुआ
मेरा स्वयं का मोल खो गया
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वक़्त ही फल का रंग दिखाता है
अच्छे से अच्छा बदल जाता है
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