रविवार, 28 सितंबर 2014

कुछ लम्हें जो तुझ से

सांस मेरी जो अटकी तुझे भी चैन ना होगा
जिस्म मेरा ज़ख़्मी होगा लहू तेरा ही होगा

दर्द इस तरह रुलाएगा तुझे
करार ना होगा मुझे

बह जाने दो दर्द को आंसुओं के रास्ते
दिल को यूँ बोझ तले रखा नहीं जाता

आरजू बेशक हो अधूरी मेरे यार
चाहत पर न होगा तेरा इख्तियार

होंठ मेरे प्यासे रहे तेरे अमृत से
पर जो नैन बहे तेरे लिए वो दर्द पिया बहुत

जान तू होगी मेरी ये न समझना
मेरी जिंदगी कैद है यादों की तस्वीरो में

छन से छीना जो तूने तोड़ दिया दिल मेरा
कुछ तो दरारे आई होगी तुझे असर है मेरा

लफ्ज़ तू संभल के कर इस्तेमाल
कोई बेक़सूर न हो बे हाल

चाल तेरी गहरी थी जो समझ ना पाया
तेरे आँखों के अपनेपन में तेरे जहन का फर्क नजर ना आया

हो सके तो इतना करना
मुझ सा और किसी को बर्बाद ना करना।

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कड़वे शब्द बोलता हूँ