शनिवार, 27 सितंबर 2014

सार्थक मूल्य

आप सब या हम सब जीवन को बेहतर जीने की कामना रखते है। कोई भी शख्श नहीं होगा जो अपने जीवन को अर्थहीन और विवेक शून्य जीना चाहता होगा।। हम दिन प्रतिदिन विकास की दौड़ में इतना आगे आ चुके है की हम ने अपनी नैतिकता को पीछे छोड़ दिया है। क्या यह जीवन सार्थक है।। ज्यादातर लोग यही कहेंगे क्या करे जीने के लिए सब करना पड़ता है।। जीने के लिए तो दिन भर मेहनत कर दो रोटी मजदूर भी जुटा रहा है।।
असलियत में हम जीने के लिए नहीं अपने चकाचौंध वाले समाज की बराबरी के लिए ये सब करते है।। पर ये नहीं जानते ये सब पाने की चाहत में वो वक़्त गँवा देते है जब उन वस्तुओ का असली लाभ उठा सकते थे।।
जैसे आजकल किसी कंपनी का विज्ञापन आता है 60 वर्ष की उम्र में आप बैंकाक घूम कर आईये।। वो क्या करेंगे बैंकाक? क्या वो मोटर नाव का आनंद ले सकते है
क्या वो पेरा ग्लाइडिंग कर सकते है
ऐसे काफी एडवेंचर है जिनका आप जवानी में ही लुत्फ़ उठा सकते है।। रही बात दृश्य की वो तो घर पर टीवी में कहीं का भी देख सकते है।। मेरा मकसद किसी का दिल दुखाना नहीं सिर्फ इतना कहना है की
"आज थोड़े में भी वो जीवन का आनंद ले सकते है जो उम्र बीत जाने पर ज्यादा में भी नहीं ले सकत"

# यूँ हसीं लम्हे खो गए उनकी चाहत म
वो है की बेवफा निकले

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