शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

जब कभी दिन ढल जाये

अक्सर हम थोड़ी सी परेशानिय देख अपना आप खो कर दुसरो पर ऊँगली करने लग जाते है पर ये अशोभनीय है
उतार चड़ाव धुप छाँव सुबह शाम जीवन का अभिन्न हिस्सा है
कभी दिन कभी रात कभी झगडा कभी बात
कभी जुदाई कभी साथ ये सब नहीं होगा तो जीवन नीरस और बेमानी हो जायेगा सब अच्छा होगा तो आप को दर्द का एहसास नहीं होगा और न ख़ुशी के मतलब
जिसे फ़ैल होने का डर होता है पास होने पर उसे ख़ुशी मिलती है न की जो पहले निश्चिन्त था उसे
अँधेरे अक्सर आते है जीवन में पर तू घबराना नहीं
ये मोड़ है अक्सर पार करने पर नै सड़क का निर्माण करते है

में दुःख और सुख दोनों की चरम सीमा से गुजर चूका हूँ और दोनों को भरपूर जीता हूँ ताकि दोनों के स्वाद में फरक न पड़े और मेरी आप से भी विनती है की जीवन को सरल बनाए कठिनता लाने का काम दुसरो पर छोड़ दीजिये जो हमेशा आप के रस्ते में रोड़े डालने की फिराक में रहते है

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कड़वे शब्द बोलता हूँ