आज अपमान का एक और अध्याय मेरे जीवन में जुड़ गया, आज पहली बार था मेने आक्रमकता के साथ विरोध जताया, उसके फलस्वरूप हुआ यह कि मुझे नौकरी छोड़ने को मजबूर होना पड़ेगा। लेकिन यह फैसला काफी दुविधा भरा है क्योंकि मेरे सिर की जिम्मेदारियां मुझे अपमानित होने को भुलाने को कह रही है। जबकि मेरी अंतरात्मा स्वाभिमान के लिए नौकरी छोड़ने को। कभी भी दो लोगो की लड़ाई में एक की गलती नहीं हो सकती लेकिन अक्सर फैसला व्यक्ति के प्रभाव के कारण होता है। आमतौर पर दफ़्तर में उस व्यक्ति जोकि सुप्रीडेंट के पद पर कार्य करता है उसकी बदतमीजी का सामने जवाब देने की बजाए लोग बाहर आकर तरह तरह की गालियों से करते है। कभी उनकी विकलांगता पर तंज कसते है तो कभी उनके गंजेपन पर, यह काफी व्यावहारिक प्रचलन है। उनकी अक्सर आदत है बिना मतलब के दूसरों की बुराइयां करने की, इस बारे मेने अपने मुख्य कार्यकारी अधिकारी को पहले ही सचेत भी किया था। मगर जाने क्यों उन्होंने इग्नोर किया। आज भी वही हुआ कि डीपीएम वीसी के लिए सेक्टर 12 जा चुके थे। उन्होंने वहां से कॉल किया कि गोवर्धन कैमला गांव का जो रिप्लाई भिजवाया था वो भेज दे। मेने उनसे फाइल पूछी तो उन्होंने कहा कि व्हाट्सएप से मिल जायेगा। तब ही इंटरकॉम पर तीव्र लहजे में बोलते हुए सुप्रीडेंट ने कहा कि साहब लेटर मांग रहे है, मेने वही रिप्लाई दिया की फाइल में संधू साहब को पता वो नहीं है। उन्होंने कहा कि फाइल से ढूंढ कर लाओ। इतने में फिर से संधू सर का कॉल आया कि साहब ने वीसी के लिए सेक्टर 12 बुलाया है। मेने जल्दी में मेल से लेटर ढूंढा और संधू सर को व्हाट्सएप कर दिया। सुप्रीडेंट सर का नंबर न होने के कारण, मेरे ध्यान से निकल गया और मैं टॉयलेट चला गया। टॉयलेट से निकलते ही कमरे में एंटर होते ही विवेक डीपीएम ने कहा कि सुपरिडेंट सर बुला रहे, तो मैं तुरंत उनके पास गया तो वहां उनकी टोन वही बदतमीज लहजे वाली थी (जोकि उनके नालायक सहकर्मियों को काफी सौहार्दपूर्ण लगती है क्योंकि उनका समय उनके पास कैमरे की निगरानी से दूर चापलूसी करने में बीतता है। ) मेने कहा सर बड़ी पोस्ट होने कोई बड़ा नहीं बनता तमीज भी होनी चाहिए बात करने कि कह दीजिए सर को मेने नहीं दी। ऐसा कहते ही मैं निकल गया तो मुझे जाते हुए को कहा थप्पड़ लगेंगे तेरा, मैं वापिस आया और तैश में बोला कि मार कर दिखाना, राकेश पीओ साथ में खड़ा था उसने रोकने की एक्टिंग की, (क्या किसी तैश में आए व्यक्ति को कोई रोक सकता है आज तक तो किसी से कोई रुका नहीं) वो सिर्फ बदतमीज आदमी को एहसास कराने का तरीका था कि गलत बोलने के क्या दुष्प्रभाव भी हो सकते है। खैर ये अंग्रेजो के बनाए अधिकारी इनको कार्य लेने से ज्यादा स्वयं कि खुशामद वाले कर्मचारी पसंद होते है। सुप्रीडेंट ने फिर कहा निकल जा यहां से तो मैं निकल आया। फिर बदतमीज में कुछ बोले तो मैं जाते हुए कह गया आपका लहजा बता रहा है कि तमीज क्या है। इतना कह कर मैं वहां से वीसी के लिए निकल गया। इसके बाद इतनी देर में मैं वीसी से आया तो सभी दफ्तर के कर्मचारियों को उन्होंने अपने संस्करण को इतना रटा दिया कि अपने शब्दों में साथ बैठे कर्मचारियों में घोल दिया। वो कहते है न एक झूठ को 100 बार दुनियां को सुनाए तो वो सच लगने लगता है। और इतने में उन्होंने वही कर दिया। मुझ से साथ वालो ने वीसी के बाद आने पर पूछा मेने सिर्फ इतना कहा कि हम तो लड़ लिए अधिकारी के लिए मुसीबत हो जायेगी फैसला करने की। क्योंकि सच अक्सर इस तरह कि लड़ाई में बाहर नहीं आता इसमें कभी एक की गलती नहीं होती एक उकसाता है तो दूसरा उग्रता दिखाता है, एक भी शांत स्वभाव का हो तो झगड़ा टल जाता है।
खैर 4 बजे सीईओ सर का फोन आया, मेने सारा पक्ष सही से रख दिया तो उन्होंने बुजुर्ग है सॉरी बोलने को कहा सुप्रीडेंट सर को, तो मुझे पता था सॉरी बोलने जाऊंगा तो फिर वही बदतमीजी का सामना करना पड़ेगा। मेने सर को बोल दिया आपके सामने ही सॉरी कह दूंगा जी। तो यहां मेने सीईओ सर के शब्दों का मान रखने के लिए अपने को कमजोर साबित कर दिया। खैर साढ़े 4 बजे सुप्रीडेंट तो अपने सिखाए सभी कर्मचारियों को लेकर पहुंच गया। और जो पाठ उन्होंने 2 घंटे से सिखाया उन शब्दों को सीईओ सर के समक्ष उकेर दिया। मेरे मन में तब तक भी यही था कि सीईओ सर की बात का मान रखना है बुजुर्ग होने के नाते सॉरी बोलना है और निकलना है। पर जब उन सब ने चक्रव्यूह रचा तो मैं निहत्था हो गया और उन सबकी सुनता रहा, उनके झूठ में न्याय नहीं केवल पद के अहम को ठेस पहुंचने की बात थी।
आरोप:- कि मेने उनका सम्मान नहीं किया जानबूझ को गलत कहा
जवाब:- अगर उनके पद का सम्मान नहीं करता तो क्या उनके बुलाने से जाता, वीसी के बहाने वहां से निकल भी सकता था बिना मिले, जैसा अक्सर दफ्तर में सब करते है।
आरोप:- कि मेने सम्मान से बात नहीं कि बड़े छोटे सबसे सम्मान से बात करनी चाहिए। सभ्य नहीं है ये।
जवाब:- क्या सम्मान से बात करना बड़े अधिकारी/कर्मचारी पर लागू नहीं होता। तुझे थप्पड़ मारूंगा कहने वाले की जुबान सभ्यपन के चर्म को छू रही थी।
आरोप :- कि मेने कहा इसके जैसे बहुत सुप्रीडेंट देखे।
जवाब :- बिलकुल कहा, क्योंकि उसका पहली बार नहीं था मुझे अपमानित करना, एक दिन निगम से DLTF की मीटिंग से आया इसने धमका कर मुझे गाड़ी से बाहर निकाला और मैं पैदल दफ़्तर आया। फिर दफ़्तर कहता फिरता जब विजिलेंस मॉनिटरिंग कमेटी की मीटिंग थी कि पत्रकार बुलाओ इसकी गाड़ी के पीछे ऑन गवर्मेंट ड्यूटी लिखा है। लेकिन इसके बावजूद मेने इनसे बचने की कोशिश की क्योंकि मेरे स्वभाव में गलत सहने की कोई गुंजाइश नहीं। अगर गाली या अपशब्द कहने कि आदत होती दूसरों के पास जाकर गाली देने से मन हल्का हो जाता। तो सबको बेहतर लगता।
खैर फिर भी मेने सीईओ सर के कहने से 3 बार सॉरी बोला और वहां से आ गया। बाहर जिस संजीव को मैं सुपरीडेंट का खास समझता था बल्कि उसने उनकी गलती निकाली कि सुपरिडेंट अक्सर सबको गलत बोलता है। फिर भी नगर निगम से बाहर आकर मॉडल टाउन तक जाते जाते, जाने कौन से दर्द ने दिल को लपेट लिया कि फूट फूट कर एक घंटे तक रोया। दुखी मन से सीईओ व डीसी सर को मेसेज भी किया, जवाब नहीं देख 10 मिनट में डिलीट भी कर दिए क्योंकि उनकी न्याय व्यवस्था देख मन दुखी था। कहीं जॉब में निकम्मा होता या पैसा कमाया होता शायद व्यक्ति नीवा पड़ जाता है। लेकिन जिसने सिर्फ काम को ही सब कुछ माना हो उसके लिए स्वाभिमान से बड़ा कुछ नहीं होता।
अब कैसे उस छत के नीचे काम कर सकता हूं सुप्रीडेंट के साथ , वो आगे भी वही बदतमीजी करेगा क्योंकि उसके पक्का कर्मचारी और बड़े पद होने का जो लाभ मिला है। वो और अहंकार से भर जायेगा।
और जब गलत ही मैं निकला हूं तो मुझे अधिकारी के सम्मान में स्वयं इस्तीफा दे देना चाहिए, मेरे अनुसार सुप्रीडेंट गलत है वो कहीं जा सकता नहीं तो फिर भी मुझे ही जाना होगा, दुविधा में मेने सीईओ सर से कल की छुट्टी लेकर कोशिश तो की है कि तीन दिन में मन शांत हो जाए। लेकिन ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा तो सोमवार को पेट और स्वाभिमान में से कौन जीतता है तो देखते है।
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