खैर 4 बजे सीईओ सर का फोन आया, मेने सारा पक्ष सही से रख दिया तो उन्होंने बुजुर्ग है सॉरी बोलने को कहा सुप्रीडेंट सर को, तो मुझे पता था सॉरी बोलने जाऊंगा तो फिर वही बदतमीजी का सामना करना पड़ेगा। मेने सर को बोल दिया आपके सामने ही सॉरी कह दूंगा जी। तो यहां मेने सीईओ सर के शब्दों का मान रखने के लिए अपने को कमजोर साबित कर दिया। खैर साढ़े 4 बजे सुप्रीडेंट तो अपने सिखाए सभी कर्मचारियों को लेकर पहुंच गया। और जो पाठ उन्होंने 2 घंटे से सिखाया उन शब्दों को सीईओ सर के समक्ष उकेर दिया। मेरे मन में तब तक भी यही था कि सीईओ सर की बात का मान रखना है बुजुर्ग होने के नाते सॉरी बोलना है और निकलना है। पर जब उन सब ने चक्रव्यूह रचा तो मैं निहत्था हो गया और उन सबकी सुनता रहा, उनके झूठ में न्याय नहीं केवल पद के अहम को ठेस पहुंचने की बात थी।
आरोप:- कि मेने उनका सम्मान नहीं किया जानबूझ को गलत कहा
जवाब:- अगर उनके पद का सम्मान नहीं करता तो क्या उनके बुलाने से जाता, वीसी के बहाने वहां से निकल भी सकता था बिना मिले, जैसा अक्सर दफ्तर में सब करते है।
आरोप:- कि मेने सम्मान से बात नहीं कि बड़े छोटे सबसे सम्मान से बात करनी चाहिए। सभ्य नहीं है ये।
जवाब:- क्या सम्मान से बात करना बड़े अधिकारी/कर्मचारी पर लागू नहीं होता। तुझे थप्पड़ मारूंगा कहने वाले की जुबान सभ्यपन के चर्म को छू रही थी।
आरोप :- कि मेने कहा इसके जैसे बहुत सुप्रीडेंट देखे।
जवाब :- बिलकुल कहा, क्योंकि उसका पहली बार नहीं था मुझे अपमानित करना, एक दिन निगम से DLTF की मीटिंग से आया इसने धमका कर मुझे गाड़ी से बाहर निकाला और मैं पैदल दफ़्तर आया। फिर दफ़्तर कहता फिरता जब विजिलेंस मॉनिटरिंग कमेटी की मीटिंग थी कि पत्रकार बुलाओ इसकी गाड़ी के पीछे ऑन गवर्मेंट ड्यूटी लिखा है। लेकिन इसके बावजूद मेने इनसे बचने की कोशिश की क्योंकि मेरे स्वभाव में गलत सहने की कोई गुंजाइश नहीं। अगर गाली या अपशब्द कहने कि आदत होती दूसरों के पास जाकर गाली देने से मन हल्का हो जाता। तो सबको बेहतर लगता।
खैर फिर भी मेने सीईओ सर के कहने से 3 बार सॉरी बोला और वहां से आ गया। बाहर जिस संजीव को मैं सुपरीडेंट का खास समझता था बल्कि उसने उनकी गलती निकाली कि सुपरिडेंट अक्सर सबको गलत बोलता है। फिर भी नगर निगम से बाहर आकर मॉडल टाउन तक जाते जाते, जाने कौन से दर्द ने दिल को लपेट लिया कि फूट फूट कर एक घंटे तक रोया। दुखी मन से सीईओ व डीसी सर को मेसेज भी किया, जवाब नहीं देख 10 मिनट में डिलीट भी कर दिए क्योंकि उनकी न्याय व्यवस्था देख मन दुखी था। कहीं जॉब में निकम्मा होता या पैसा कमाया होता शायद व्यक्ति नीवा पड़ जाता है। लेकिन जिसने सिर्फ काम को ही सब कुछ माना हो उसके लिए स्वाभिमान से बड़ा कुछ नहीं होता।
अब कैसे उस छत के नीचे काम कर सकता हूं सुप्रीडेंट के साथ , वो आगे भी वही बदतमीजी करेगा क्योंकि उसके पक्का कर्मचारी और बड़े पद होने का जो लाभ मिला है। वो और अहंकार से भर जायेगा।
और जब गलत ही मैं निकला हूं तो मुझे अधिकारी के सम्मान में स्वयं इस्तीफा दे देना चाहिए, मेरे अनुसार सुप्रीडेंट गलत है वो कहीं जा सकता नहीं तो फिर भी मुझे ही जाना होगा, दुविधा में मेने सीईओ सर से कल की छुट्टी लेकर कोशिश तो की है कि तीन दिन में मन शांत हो जाए। लेकिन ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा तो सोमवार को पेट और स्वाभिमान में से कौन जीतता है तो देखते है।