एक ऐसा बन्धन जो अगर सामाजिक रूप से जुड़ा हो तो वैचारिक मतभेद होने के कारण जीवन अभिशाप बन जाता है। इसमें किसी एक की गलती नहीं होती बस उनकी समझ विपरीत होती है, आप यूं कह सकते हो कि एक आस्तिक होता है तो दूसरा नास्तिक। विवाह को लगभग 14 वर्ष बीत चुके है लेकिन आज तक मुझे यह एहसास नहीं हुआ कि वैवाहिक जीवन में यह सुख है जो केवल विवाह करने उपरांत ही संभव है और ऐसा नहीं कि यह घुटन मुझे ही महसूस हो रही है और मेरी पत्नि को नहीं है, कहूं तो मेरी पत्नि को यह घुटन शायद मुझ से भी कहीं गुना ज्यादा है क्योंकि मुझे घर से बाहर जाने के कारण ध्यान थोड़ा निजी समस्याओं से हटकर कार्यालय की समस्याओं में बंट जाता है। मगर मेरी पत्नि को तो 24 घंटे उसी घुटन से गुजरना पड़ता है। और उसका मन इतना नाजुक हो चुका है कि जरा जरा सी बात उसके मन में घर कर जाती है। अब कल की बात ले लीजिए हम नॉर्मल बात कर रहे थे, मेने पूछ लिया कि वैष्णो देवी जा रहे है कोई दोस्त तो हम भी चलें, कहने लगी नहीं मुझे किसी के साथ नहीं जाना दूसरों के साथ भाग भाग रहती है मुझे आराम से अर्धकुंवारी व अन्य जगह आराम से पूजा पाठ करना है। यहां तक सब सही चल रहा था। फिर अचानक से बोल पड़ी मुझे एक और काम करना है कि छोटे बेटे के मूल शांति का पाठ दोबारा करवाना है जो पिछली बार हुआ था वो विघ्न पड़ गया। मेरे मुख से अनायास निकल गया कि इसकी क्या गारंटी है कि अगली बार जो पंडित करेगा वो सफल होगा और जो पहले किया था वो असफल है इसका तो कोई पैमाना नहीं। बस इस बहस में दोनों के मध्य तनाव हो गया। मेरी अच्छाई लगाओ या बुराई लेकिन मैं हमेशा खामोश हो जाता हूं मेरा विजन होता है कि गुस्से में कही बात कभी कभी ऐसी चुभ जाती है कि उम्र भर की रिश्ते में खटास बन जाती है। बस मेरी पत्नि को लगता है कि मैं समस्याओं से दूर भागता हूं। उनका सामना नहीं करता जबकि मुझे लगता है कलह ही वो विषय है जिसमे पीछे हट जाना सभी उपायों से बेहतर है।
कल की वो लड़ाई उसके मन में ऐसा गुब्बार बनती रही कि उसके डिप्रेशन को दुबारा घुटन ने ट्रिगर कर दिया। मैंने माहौल सुखद बनाने हेतु कोशिश की और कहा की बच्चों का भविष्य उनकी शिक्षा, केयर और सुविधाओं से बनेगा न कि किसी पूजा पाठ से, बस यह बात सुनते ही उसने मुझे पिछले 14 वर्षों के सारे जख्मों को कुरेद कुरेद सुनाया और डिप्रेशन की अधिकता के कारण शाइवरिंग (कंपन) करने लगी। नेट पर उपाय ढूंढने के पश्चात देखा कि गर्माहट अर्थात पैरों के तलवे की मालिश या गर्म पानी पीने से आराम मिल सकता है। अब इतने क्रोध में पानी तो उसने पीना नहीं था। मेने उसके मना व बार बार पैर झटकने के बावजूद मालिश शुरू कर दी। 15 मिनट की मसाज के बाद कंपन में आराम आया।
अब कोई समझाए इस घटना में दोष कहां था कहां इतना बड़ा मसला था कि अपनी सेहत को ही खराब कर लिया तथा दोनों की मानसिक अवस्था कमजोर हुई वो अलग, भावनाओं के ये दौर इंसान को इतना बेबस कर देते ही कि अगर थोड़ा भी दिमाग ज्यादा उत्तेजित हो जाए तो कोई भी अप्रिय घटना को बढ़ावा मिल जाता है। मेरी पत्नि की मानसिक अवस्था के लगभग पिछले साल से ज्यादा ही खराब होने के कारण मेरा भी जीवन से बिलकुल विश्वास उठ गया है। पूरी निष्ठा व मेहनत से परिवार के लिए दिन रात झूझने के बावजूद भी जब केवल तिरस्कार ही मिले तो मन व्यथित हो जाता है। असली वजह वर्तमान पीढ़ी में सहन शक्ति का कम होना तथा त्याग की भावना का कम हो जाना है। रिश्तों में अगर लम्बा चलना होता है तो समय समय पर किसी न किसी को पिसना ही होता है। कमाल की बात है हम केवल संतान के आगे तो झुक जाते है बाकी सभी रिश्तों में टकराव ले आते है। कहीं न कहीं हम सभी बुरे है क्योंकि हम निज स्वार्थ में इतने अंधे हो जाते है दूसरों के लिए कब तकलीफ बन गए हमे खुद नहीं पता चलता और रिश्तों में गहरी खाई हो जाती है।
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