आँसू नही थे आँख में
पर नमी बहुत थी
कहने को तो सब थे
दिल की समझे कोई
वो कमी बहुत थी
चुपके से रोया वो
मजबूत थी शख्सियत तो
पर दिल में नरमी बहुत थी
किसे कहता चोट कहाँ थी
जब मरहम वाले कातिल हो
फिर भी चुपके से रोया वो
अपनों में गैरों से निशानी जो थी
हर दूसरी रात भीग जाती है पलकें
किस से दोष दें किसे अपना कहें
जब साँस ही न जिस्म में रहें
चुपके से रोया वो
बन्द दीवारों में
रात के अँधियारों में
उदास गलियारों में
चुपके से रोया वो...
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