मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

अकेलापन

zindgi में एक khamoshi aur udaasi chaayi huyi है, jane kyon ander से कुछ toot raha है


aisa lagta है की में arsh से farsh की aur bad raha हूँ , जीवन के sare raste खो से गए हो, एक धुंध है जो dheere dheere  meri मंजिलों पर parda daal रही है.

sare milkar jaise मुझे mitti में milana chahte हो, aise waqt पर koi एक भी इंसान नहीं जो मुझे सहारा दे सके, मेरे जीवन की हमेशा ही ये त्रासदी रही है की मुझे कभी किसी ने सहारा नहीं दिया. रेंग रेंग कर मेने एक chothai जीवन gujar दिया aaj की umar dekhe तो लगभग आधा जीवन ही sangharsh की bhent chad gaya. haan कभी कभी कुछ thandi hawa के jhonke aaye पर un jhonko के baad , us से kahi jyada jhulsana pada waqt की tapis में. maloom नहीं kab मुझे wo sukh milega jis के लिए में जीता हूँ हर din एक कड़वा लम्हा पीता हूँ ये soch की is रात की भी सुबह आएगी मुझे भी कुछ bunde जीने की कला सिखाएगी.

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कड़वे शब्द बोलता हूँ