रोक ले मुझे में जहाँ चला जा रहा हूँ किसी शोक से बंधा चला जा रहा हूँ
मुझे भी मालूम नहीं हश्र क्या होगा इस राह का, बस आंखें बंद किये चल रहा हूँ
हर पल टूट जाता है जिस्म का एक कोना, फिर भी में हूँ की रुकता नहीं
खुद को जलने का मन करता है पर में हूँ की फूंकता नहीं
जलने से भी डरता हूँ और धुआं है की थमने का नाम नहीं
पानी डाल दे कोई तो दम घुट जाता है मेरे इरादों का
बंद हो जाता है पन्ना मेरे किया गए वादों का
संन्यास जिंदगी से ले नहीं सकता बहुत दूर आ चूका हूँ
गृहस्थी का खंजर सीने में उतार चूका हूँ
लोट कर आते नहीं कभी जीवन के पन्ने , हर दिन एक पन्ना उड़ जाता है
जो जाग लिया तो रंग भर देता है नहीं तो कोरा ही छूट जाता है
बहुत बार दिल करता है की ज़माने को आग लगा दूं
पर सोचता हूँ ज़माने ने कौन सा मेरे साथ कुछ अलग किया था
अब मेरे जीवन का कोई मतलब नहीं है पर में फिर भी उम्मीद से जिए जा रहा हूँ
हो जाने कही से अभी भी कोई बहार आ जाये और मुझे फिर पटरी पर ले आये
ऐसे वक़्त बुरे व्यसन खींचते है मुझे अपनी और
हर वक़्त पड़ता है कानो में अजीब सा शोर
चुप हूँ फिर भी ................................................
कही में पागल तो नहीं हो गया , मुझ से तो पागलखाने का रास्ता भी खो गया
अब कौन मुझे राह दिखायेगा , यहाँ पर तो हर कोई पागल ही टकराएगा
गूंजती है हर तरफ चीख और चिल्लाने की आवाजे कोई दर्द से तो कोई मजे से चिल्ला रहा है
सब का शोर मेरे कानो को सता रहा है दर्द से मुझे निकलने का रास्ता मिल नहीं रहा और मजे में चिल्लाना मुझे आता नहीं
बस्तिया फूंक दी हमने सोच कर , की चिल्लाना बंद हो जायेगा
पर हमे क्या पता था की अब सन्नाटा हमे तड्पाएगा
किसी को मरहम भी न मिला मेरे दर्द को मिटाने का,
कोई सज्जन नमक ले आये लगाना को .........................
अच्छी बातें भी होती है इस जहाँ में , कभी कभी कोई फूल खिल जाता है
पर उसके खिलने से ही, उसके मुरझाने का डर सता जाता है
बात वो हो गयी है की अब हमे रोना तो आता नहीं पर हंसने की भी वजह नहीं
सुंदर तो बहुत थे पर अब किसी के लिए सजने की वजह नहीं
गुजारिश करूँगा आप से की ऐसे जीयो की औरो की परवाह न हो ,
जिंदगी चाहे कितनी भी हो
ज़िन्दगी चाहे कितनी भी हो .................पर किसी की आह न हो
मुझे भी मालूम नहीं हश्र क्या होगा इस राह का, बस आंखें बंद किये चल रहा हूँ
हर पल टूट जाता है जिस्म का एक कोना, फिर भी में हूँ की रुकता नहीं
खुद को जलने का मन करता है पर में हूँ की फूंकता नहीं
जलने से भी डरता हूँ और धुआं है की थमने का नाम नहीं
पानी डाल दे कोई तो दम घुट जाता है मेरे इरादों का
बंद हो जाता है पन्ना मेरे किया गए वादों का
संन्यास जिंदगी से ले नहीं सकता बहुत दूर आ चूका हूँ
गृहस्थी का खंजर सीने में उतार चूका हूँ
लोट कर आते नहीं कभी जीवन के पन्ने , हर दिन एक पन्ना उड़ जाता है
जो जाग लिया तो रंग भर देता है नहीं तो कोरा ही छूट जाता है
बहुत बार दिल करता है की ज़माने को आग लगा दूं
पर सोचता हूँ ज़माने ने कौन सा मेरे साथ कुछ अलग किया था
अब मेरे जीवन का कोई मतलब नहीं है पर में फिर भी उम्मीद से जिए जा रहा हूँ
हो जाने कही से अभी भी कोई बहार आ जाये और मुझे फिर पटरी पर ले आये
ऐसे वक़्त बुरे व्यसन खींचते है मुझे अपनी और
हर वक़्त पड़ता है कानो में अजीब सा शोर
चुप हूँ फिर भी ................................................
कही में पागल तो नहीं हो गया , मुझ से तो पागलखाने का रास्ता भी खो गया
अब कौन मुझे राह दिखायेगा , यहाँ पर तो हर कोई पागल ही टकराएगा
गूंजती है हर तरफ चीख और चिल्लाने की आवाजे कोई दर्द से तो कोई मजे से चिल्ला रहा है
सब का शोर मेरे कानो को सता रहा है दर्द से मुझे निकलने का रास्ता मिल नहीं रहा और मजे में चिल्लाना मुझे आता नहीं
बस्तिया फूंक दी हमने सोच कर , की चिल्लाना बंद हो जायेगा
पर हमे क्या पता था की अब सन्नाटा हमे तड्पाएगा
किसी को मरहम भी न मिला मेरे दर्द को मिटाने का,
कोई सज्जन नमक ले आये लगाना को .........................
अच्छी बातें भी होती है इस जहाँ में , कभी कभी कोई फूल खिल जाता है
पर उसके खिलने से ही, उसके मुरझाने का डर सता जाता है
बात वो हो गयी है की अब हमे रोना तो आता नहीं पर हंसने की भी वजह नहीं
सुंदर तो बहुत थे पर अब किसी के लिए सजने की वजह नहीं
गुजारिश करूँगा आप से की ऐसे जीयो की औरो की परवाह न हो ,
जिंदगी चाहे कितनी भी हो
ज़िन्दगी चाहे कितनी भी हो .................पर किसी की आह न हो