यूं आसान नहीं प्रेम, प्रेम देखा जाए तो बहुत कुछ छीन लेता है तो बहुत कुछ सीखा जाता है
पहला पड़ाव
किसी बस स्टॉप/कॉलेज/दफ्तर/ट्रेन/पार्क में वो अक्सर आती थी जब पहली बार देखा था तो पहली नजर में ही सीनें में उतर गई, और ऐसी लत बन गई, रोज घंटों तक उसके आने का वक्त पता होते हुए भी पहले से इंतजार करना, जाने के बाद घंटों तक आहें भरना। उसका किसी और बात से हंसना और दिल का गदगद हो जाना। प्यार का वो अफसाना खुद से जुदा हो जाना। गहराई नही नापी जा सकती उन लम्हों की जब किसी से यूं प्यार होता है। सब छोड़ इंसान उसकी चाहत में डूब जाता है।
कुछ मोहब्बत करने वाले इसी पड़ाव तक रह जाते है और उलझी पहेली जैसी यादें लेकर उम्र गुजार देते है।
दूसरा पड़ाव
पहले पड़ाव के बाद शुरू होती है दूसरे पड़ाव की कहानी, अब इंतजार से बात आगे बढ़ने लगती है, कामकाजी वजहों से उनसे बात होने लगती है, कुछ नही कह पाते पर एक दूसरे की हदों से ज्यादा मदद करना और साइड लेने के सिलसिला शुरू हो जाता है। कभी कभी गलती से दो चाय की प्यालियां भी एक साथ हो जाती है। फिर दौर शुरू होते है गलत फहमियों के, किसी और के साथ उनका हंसना दिल को कचोट जाता है, एक दो दिन उनसे बात करने का मन नहीं करता और उनसे नाराजगी दर्शाता है, फिर इश्क का पारा जाने अंजाने जोर करता है तो वही दौर फिर शुरू हो जाता है एक दूसरे की ख्वाहिशों को अपनाने का, उसकी छोटी छोटी बातों को ध्यान रखना, उसकी पसंद नापसंद को अपनी पसंद में ढाल लेने का, और इस पड़ाव का बेहतर पल होता है कि उन दोनों को इतना पता नही होता लेकिन शहर में खबर आग की तरह फेल जाती है उनके इश्क की, क्योंकि उनको तो जाहिर करना होता नहीं, पर दुनियां उनकी नजरों को रोज पढ़ कर, नुक्कड़ वाली ख़बर का अहम हिस्सा बना देती है।
इस पड़ाव पर अक्सर वो लोग छूट जाते है जिनका या तो शहर बदल जाता है, या उनके काम ।
तीसरा पड़ाव
दूसरे पड़ाव के दौर के बाद अचानक कभी कोई गम ऐसा आता है तो एक दूसरे के सामने वो असहाय से हो जाते है और ऐसे कमजोर वक्त जब वो एक दूसरे का साथ निभाते है तो उस वक्त जो लगाव पैदा होता है उसकी भीनी भीनी खुशबू दो दिलों को एक कर देती है। खुलकर वो दिल एक दूसरे के सामने बेपर्दा कर देते है। ऐसे पल बेहद नाजुक हो जाते है। यहां दोनों में वो डर पैदा हो जाता है कहीं हमसे कोई गलती न हो जाए और हम सामने वाले को खो न दें। प्रेम की चर्म सीमा होती है तीसरा पड़ाव, यहां एक दूसरे की रूह में उतर जाते है प्रेम करने वाले, उन्हें एक दूसरे के सिवा जमाने में कुछ नजर नहीं आता, सिवाए एक दूसरे को प्रेम करने के
इस पड़ाव में अक्सर वो रिश्ते छूट जाते है जिनका सामाजिक भेद के कारण मिलन संभव नहीं हो पाता, और इस मोड़ पर जो रिश्ता छूटता है वो ताउम्र एक खलिश बन यादों में बस जाता है और बार बार ये एहसास करवाता है कि काश ऐसा हो जाता काश हम ये कदम उठा लेते काश....बन रही जाती है भावनाए।
चौथा पड़ाव
इश्क का सबसे बड़ा इम्तिहान वाला पड़ाव है इश्क रूहों में उतर जाने के बाद, जिस्मों की आड़ में लिपटने को आतुर रहता है रोकती है तो बस उन्हें वो तंग निगाहें या सामाजिक शिक्षा जो उन्हें बचपन से बेड़ियों की तरह पहना दी जाती है कि ये किया तो वो गलत हो जायेगा ये गलत हो जायेगा। प्रेम को इज़्जत के भंवर में उलझा दिया जाता है। इस पड़ाव को सिर्फ वही पार कर पाते है जो या तो सामाजिक शिक्षा को कभी गंभीरता से नहीं लेते या जिन्होंने उच्च शिक्षा ग्रहण करके उतना बड़ा ओहदा मिल चुका होता है कि समाज उनके निजी जीवन पर प्रश्न करने की बजाए उनकी कामयाबी को नतमस्तक हो जाता है। पड़ाव पार करने के बाद जब जिस्मों की दीवारें लांघ ली जाती है तो उसके बाद प्रेम का असली चेहरा सामने आता है या कहूं तो सामने आता है कि वो प्रेम था या आकर्षण, यह इस पड़ाव में तय हो पाता है। जो कमजोर होता है प्रेम में वो जिस्मानी जरूरतों के बाद दूसरे को तन्हा छोड़ कर हमेशा के लिए सीने में नासूर जख्म बन कर दूसरे के लिए प्रेम को महज भ्रम की तस्वीर जहन में छोड़ जाते है। और जो साथ रहता है वो जिम्मेदारी से उम्र भर के लिए खूबसूरत रिश्ता बन जाता है। विश्वास की गहरी नींव उनके रिश्ते में मजबूती ले आती है।
पांचवा पड़ाव
चार पड़ाव से गुजर गया जो पांचवा पड़ाव उसकी जिंदगी में बस शुद्ध प्रेम और समर्पण ही लाता है, उनके जीवन में एक दूसरे की बेहतर समझ और एक दुसरे का अनमोल साथ होता है। वो प्रेम के आदर्श बन जाते है।
मैं इतना कहना चाहूंगा कि नफरतों को जीवन में जगह मत दीजिए, गलती सब से होती है, भाव से इंसान को पहचानना सीखिए, स्वभाव का पहली नजर में पता चल जाता है, कभी अपने स्वार्थ में किसी को न परखिए, एक सामरिक नजर से इंसान को जानिए और प्रेम से रहे, किसी के लिए द्वेष आपको ही जलाएगा एक बदनीयत इंसान बनाएगा। प्रेम रखोगे दिल में तो आप खूबसूरत व्यक्तित्व के इंसान बनोगे और सदा आंतरिक खुशी के मालिक बन जाओगे।