मंगलवार, 5 नवंबर 2024

स्वच्छता योजना नहीं आचरण हो

स्वच्छता के बारे में सभी प्रशिक्षण तकनीकी बातें तो आपको बता देंगे लेकिन तकनीक से भी अलग स्वच्छता का एक पहलू है व्यवहार परिवर्तन, आप सब को यह तो अवश्य पता होगा कुछ बरस पहले गांव की फिरनी व आसपास के खेतों में खुले में शौच के कारण मल पड़ा हुआ मिलता था लेकिन यह नहीं पता होगा कि ऐसा क्या हुआ जो आज सभी लोग खुलें में शौच की बजाए शौचालय का प्रयोग करने लगे
तो उसका बेहतरीन टूल है
 व्यवहार परिवर्तन
लोगों के आचरण में बदलाव से ही संभव हो पाया यह सब, न कोई पैसा लगा न कोई योजना , काम आया सिर्फ लोगों में जागरूकता का अभियान उनके आचरण को बदलने के टूल।

ठीक उसी तरह अब भी हमें लोगों ने इतनी जागरूकता करनी होगी कि उन्हें मालूम चले कि एक गंदगी से उनके स्वास्थ्य और जेब पर कितना असर पड़ता है, कूदे या कचरे का व्यक्तिगत अथवा घरेलू स्तर पर ही निपटान हो जाए तो सब बदल जाएगा। बाहर कूड़े के ढेर नहीं होंगे, सर्वत्र स्वच्छता का वास होगा। 
फिर सवाल उठता है करें कैसे?
तो आसान सा जवाब है गांव मोहल्ला में जब भी कोई सभा हो तो एक स्वच्छता का संदेश इफेक्टिव तरीके से दिया जाए तो जब बार बार सभी वही बात करेंगे तो आने वाली पीढ़ी और जनमानस के मस्तिष्क पटल पर स्वच्छता की छाप छूट जाएगी सभी अपने स्तर पर भागीदारी करके समाज और अपने गांव को स्वच्छ रखेंगे। 

गुरुवार, 3 अगस्त 2023

टकराव स्वाभिमान का

आज अपमान का एक और अध्याय मेरे जीवन में जुड़ गया, आज पहली बार था मेने आक्रमकता के साथ विरोध जताया, उसके फलस्वरूप हुआ यह कि मुझे नौकरी छोड़ने को मजबूर होना पड़ेगा। लेकिन यह फैसला काफी दुविधा भरा है क्योंकि मेरे सिर की जिम्मेदारियां मुझे अपमानित होने को भुलाने को कह रही है। जबकि मेरी अंतरात्मा स्वाभिमान के लिए नौकरी छोड़ने को। कभी भी दो लोगो की लड़ाई में एक की गलती नहीं हो सकती लेकिन अक्सर फैसला व्यक्ति के प्रभाव के कारण होता है। आमतौर पर दफ़्तर में उस व्यक्ति जोकि सुप्रीडेंट के पद पर कार्य करता है उसकी बदतमीजी का सामने जवाब देने की बजाए लोग बाहर आकर तरह तरह की गालियों से करते है। कभी उनकी विकलांगता पर तंज कसते है तो कभी उनके गंजेपन पर, यह काफी व्यावहारिक प्रचलन है। उनकी अक्सर आदत है बिना मतलब के दूसरों की बुराइयां करने की, इस बारे मेने अपने मुख्य कार्यकारी अधिकारी को पहले ही सचेत भी किया था। मगर जाने क्यों उन्होंने इग्नोर किया। आज भी वही हुआ कि डीपीएम वीसी के लिए सेक्टर 12 जा चुके थे। उन्होंने वहां से कॉल किया कि गोवर्धन कैमला गांव का जो रिप्लाई भिजवाया था वो भेज दे। मेने उनसे फाइल पूछी तो उन्होंने कहा कि व्हाट्सएप से मिल जायेगा। तब ही इंटरकॉम पर तीव्र लहजे में बोलते हुए सुप्रीडेंट ने कहा कि साहब लेटर मांग रहे है, मेने वही रिप्लाई दिया की फाइल में संधू साहब को पता वो नहीं है। उन्होंने कहा कि फाइल से ढूंढ कर लाओ। इतने में फिर से संधू सर का कॉल आया कि साहब ने वीसी के लिए सेक्टर 12 बुलाया है। मेने जल्दी में मेल से लेटर ढूंढा और संधू सर को व्हाट्सएप कर दिया। सुप्रीडेंट सर का नंबर न होने के कारण, मेरे ध्यान से निकल गया और मैं टॉयलेट चला गया। टॉयलेट से निकलते ही कमरे में एंटर होते ही विवेक डीपीएम ने कहा कि सुपरिडेंट सर बुला रहे, तो मैं तुरंत उनके पास गया तो वहां उनकी टोन वही बदतमीज लहजे वाली थी (जोकि उनके नालायक सहकर्मियों को काफी सौहार्दपूर्ण लगती है क्योंकि उनका समय उनके पास कैमरे की निगरानी से दूर चापलूसी करने में बीतता है। ) मेने कहा सर बड़ी पोस्ट होने कोई बड़ा नहीं बनता तमीज भी होनी चाहिए बात करने कि कह दीजिए सर को मेने नहीं दी। ऐसा कहते ही मैं निकल गया तो मुझे जाते हुए को कहा थप्पड़ लगेंगे तेरा, मैं वापिस आया और तैश में बोला कि मार कर दिखाना, राकेश पीओ साथ में खड़ा था उसने रोकने की एक्टिंग की, (क्या किसी तैश में आए व्यक्ति को कोई रोक सकता है आज तक तो किसी से कोई रुका नहीं) वो सिर्फ बदतमीज आदमी को एहसास कराने का तरीका था कि गलत बोलने के क्या दुष्प्रभाव भी हो सकते है। खैर ये अंग्रेजो के बनाए अधिकारी इनको कार्य लेने से ज्यादा स्वयं कि खुशामद वाले कर्मचारी पसंद होते है। सुप्रीडेंट ने फिर कहा निकल जा यहां से तो मैं निकल आया। फिर बदतमीज में कुछ बोले तो मैं जाते हुए कह गया आपका लहजा बता रहा है कि तमीज क्या है।  इतना कह कर मैं वहां से वीसी के लिए निकल गया। इसके बाद इतनी देर में मैं वीसी से आया तो सभी दफ्तर के कर्मचारियों को उन्होंने अपने संस्करण को इतना रटा दिया कि अपने शब्दों में साथ बैठे कर्मचारियों में घोल दिया। वो कहते है न एक झूठ को 100 बार दुनियां को सुनाए तो वो सच लगने लगता है। और इतने में उन्होंने वही कर दिया। मुझ से साथ वालो ने वीसी के बाद आने पर पूछा मेने सिर्फ इतना कहा कि हम तो लड़ लिए अधिकारी के लिए मुसीबत हो जायेगी फैसला करने की। क्योंकि सच अक्सर इस तरह कि लड़ाई में बाहर नहीं आता इसमें कभी एक की गलती नहीं होती एक उकसाता है तो दूसरा उग्रता दिखाता है, एक भी शांत स्वभाव का हो तो झगड़ा टल जाता है। 
खैर 4 बजे सीईओ सर का फोन आया, मेने सारा पक्ष सही से रख दिया तो उन्होंने बुजुर्ग है सॉरी बोलने को कहा सुप्रीडेंट सर को, तो मुझे पता था सॉरी बोलने जाऊंगा तो फिर वही बदतमीजी का सामना करना पड़ेगा। मेने सर को बोल दिया आपके सामने ही सॉरी कह दूंगा जी। तो यहां मेने सीईओ सर के शब्दों का मान रखने के लिए अपने को कमजोर साबित कर दिया। खैर साढ़े 4 बजे सुप्रीडेंट तो अपने सिखाए सभी कर्मचारियों को लेकर पहुंच गया। और जो पाठ उन्होंने 2 घंटे से सिखाया उन शब्दों को सीईओ सर के समक्ष उकेर दिया। मेरे मन में तब तक भी यही था कि सीईओ सर की बात का मान रखना है बुजुर्ग होने के नाते सॉरी बोलना है और निकलना है। पर जब उन सब ने चक्रव्यूह रचा तो मैं निहत्था हो गया और उन सबकी सुनता रहा, उनके झूठ में न्याय नहीं केवल पद के अहम को ठेस पहुंचने की बात थी। 

आरोप:- कि मेने उनका सम्मान नहीं किया जानबूझ को गलत कहा
जवाब:- अगर उनके पद का सम्मान नहीं करता तो क्या उनके बुलाने से जाता, वीसी के बहाने वहां से निकल भी सकता था बिना मिले, जैसा अक्सर दफ्तर में सब करते है। 
आरोप:- कि मेने सम्मान से बात नहीं कि बड़े छोटे सबसे सम्मान से बात करनी चाहिए। सभ्य नहीं है ये।
जवाब:- क्या सम्मान से बात करना बड़े अधिकारी/कर्मचारी पर लागू नहीं होता। तुझे थप्पड़ मारूंगा कहने वाले की जुबान सभ्यपन के चर्म को छू रही थी। 
आरोप :- कि मेने कहा इसके जैसे बहुत सुप्रीडेंट देखे।
जवाब :- बिलकुल कहा, क्योंकि उसका पहली बार नहीं था मुझे अपमानित करना, एक दिन निगम से DLTF की मीटिंग से आया इसने धमका कर मुझे गाड़ी से बाहर निकाला और मैं पैदल दफ़्तर आया। फिर दफ़्तर कहता फिरता जब विजिलेंस मॉनिटरिंग कमेटी की मीटिंग थी कि पत्रकार बुलाओ इसकी गाड़ी के पीछे ऑन गवर्मेंट ड्यूटी लिखा है। लेकिन इसके बावजूद मेने इनसे बचने की कोशिश की क्योंकि मेरे स्वभाव में गलत सहने की कोई गुंजाइश नहीं। अगर गाली या अपशब्द कहने कि आदत होती दूसरों के पास जाकर गाली देने से मन हल्का हो जाता। तो सबको बेहतर लगता। 

खैर फिर भी मेने सीईओ सर के कहने से 3 बार सॉरी बोला और वहां से आ गया। बाहर जिस संजीव को मैं सुपरीडेंट का खास समझता था बल्कि उसने उनकी गलती निकाली कि सुपरिडेंट अक्सर सबको गलत बोलता है। फिर भी नगर निगम से बाहर आकर मॉडल टाउन तक जाते जाते, जाने कौन से दर्द ने दिल को लपेट लिया कि फूट फूट कर एक घंटे तक रोया। दुखी मन से सीईओ व डीसी सर को मेसेज भी किया, जवाब नहीं देख 10 मिनट में डिलीट भी कर दिए क्योंकि उनकी न्याय व्यवस्था देख मन दुखी था। कहीं जॉब में निकम्मा होता या पैसा कमाया होता शायद व्यक्ति नीवा पड़ जाता है। लेकिन जिसने सिर्फ काम को ही सब कुछ माना हो उसके लिए स्वाभिमान से बड़ा कुछ नहीं होता।

अब कैसे उस छत के नीचे काम कर सकता हूं सुप्रीडेंट के साथ , वो आगे भी वही बदतमीजी करेगा क्योंकि उसके पक्का कर्मचारी और बड़े पद होने का जो लाभ मिला है। वो और अहंकार से भर जायेगा। 
और जब गलत ही मैं निकला हूं तो मुझे अधिकारी के सम्मान में स्वयं इस्तीफा दे देना चाहिए, मेरे अनुसार सुप्रीडेंट गलत है वो कहीं जा सकता नहीं तो फिर भी मुझे ही जाना होगा, दुविधा में मेने सीईओ सर से कल की छुट्टी लेकर कोशिश तो की है कि तीन दिन में मन शांत हो जाए। लेकिन ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा तो सोमवार को पेट और स्वाभिमान में से कौन जीतता है तो देखते है। 

मंगलवार, 18 जुलाई 2023

दर्द का ट्रिगर

15 मार्च 2023 का दिन मैं तो भूल गया था लेकिन आज मेरे दोस्त के दो दिन के जन्मे बच्चे की ठाकुर हॉस्पिटल करनाल में हालत देख कर, मेरा अपना दर्द भी ट्रिगर हो गया, मेरे सामने उस भयानक दिन के सारे लम्हें एक पल में आंखों के आगे से गुजर गए, 14 मार्च को बेटे की पट पर लोहे का बेंच गिरने से हड्डी टूट गई थी। डॉक्टर ने अगले दिन ऑपरेशन ही इलाज का एकमात्र विकल्प बताया, मेने भी मेडिकल विद्या के आगे नतमस्तक हो कह दिया जैसा डॉक्टर साहब आपको ठीक लगे। 
15 मार्च की सुबह 8 बजे डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर लेकर गए तकरीबन 10 बजे उन्होंने मुझे ही आईसीयू में बुलाया, वीर निरंतर रोता और सिसकता जा रहा था। एक पल भी गैप दिए बिना वो जैसे रो रहा था मेरा दिल बैठ रहा था। डॉक्टर ने उसे एक खड़तल से 3 घंटे तक पड़े रहने के निर्देश दिए। मेरा एक हाथ उसकी कमर पर स्पॉट दिए तथा दूसरा मेने उसकी मुट्ठी को अपने हाथ से पकड़ रखा था। जैसे जैसे समय बड़ रहा था उसका रोना मुझे बुरी तरह से तोड़ रहा था। शायद वो दर्द मैं बियान ना कर पाऊं लेकिन उस दर्द ने मुझे जिंदगी की अहमियत जता दी। मैं हर एक मिनट में उसे सांत्वना दे रहा था लगभग 3 घंटे उसका रोना बंद नहीं हुआ। और मैं आईसीयू में उसके पास बैठकर उस मार्मिक पलों में घुट रहा था।। मुझे एक जिम्मेदार पिता की तरह संभलना भी था और मां के दिल सा रोना भी था। रोता तो संभलता कैसे इसलिए बस उसका रोना और मेरा ये कहना कोई न बेटा बस ठीक हो जायेगा थोड़ी देर में, ये सिलसिला 3 घंटे चलता रहा। 
फिर रात के 12 बजे से उसका खाना पीना सब बंद था, जब सिसकना बंद हुआ तो उसे पानी की प्यास लगने लगी डॉक्टर का कहना था की 6 घंटे तक पानी नहीं दे सकते। मुझे लग रहा था जैसे आज कुदरत मेरे बेटे की सारी परीक्षा ले रही हो,  उसके सब्र के बांध को देख रही थी या मेरे । 
और आज दोस्त के बेटे की हालत ने वो दिन मेरी नजरों में फिर गुजार दिया। दर्द किसी भी अपने का हो तकलीफ तो देता है, हालांकि समझता वही है जिस पर गुजरती है लेकिन बेबस वो भी कम नहीं होता जो इस बुरे वक्त की घड़ी में अपनों के साथ होने के सिवा कोई मदद नहीं कर पाता। 

शनिवार, 27 मई 2023

वैवाहिक जीवन

एक ऐसा बन्धन जो अगर सामाजिक रूप से जुड़ा हो तो वैचारिक मतभेद होने के कारण जीवन अभिशाप बन जाता है। इसमें किसी एक की गलती नहीं होती बस उनकी समझ विपरीत होती है, आप यूं कह सकते हो कि एक आस्तिक होता है तो दूसरा नास्तिक।  विवाह को लगभग 14 वर्ष बीत चुके है लेकिन आज तक मुझे यह एहसास नहीं हुआ कि वैवाहिक जीवन में यह सुख है जो केवल विवाह करने उपरांत ही संभव है और ऐसा नहीं कि यह घुटन मुझे ही महसूस हो रही है और मेरी पत्नि को नहीं है, कहूं तो मेरी पत्नि को यह घुटन शायद मुझ से भी कहीं गुना ज्यादा है क्योंकि मुझे घर से बाहर जाने के कारण ध्यान थोड़ा निजी समस्याओं से हटकर कार्यालय की समस्याओं में बंट जाता है। मगर मेरी पत्नि को तो 24 घंटे उसी घुटन से गुजरना पड़ता है। और उसका मन इतना नाजुक हो चुका है कि जरा जरा सी बात उसके मन में घर कर जाती है। अब कल की बात ले लीजिए हम नॉर्मल बात कर रहे थे, मेने पूछ लिया कि वैष्णो देवी जा रहे है कोई दोस्त तो हम भी चलें, कहने लगी नहीं मुझे किसी के साथ नहीं जाना दूसरों के साथ भाग भाग रहती है मुझे आराम से अर्धकुंवारी व अन्य जगह आराम से पूजा पाठ करना है। यहां तक सब सही चल रहा था। फिर अचानक से बोल पड़ी मुझे एक और काम करना है कि छोटे बेटे के मूल शांति का पाठ दोबारा करवाना है जो पिछली बार हुआ था वो विघ्न पड़ गया। मेरे मुख से अनायास निकल गया कि इसकी क्या गारंटी है कि अगली बार जो पंडित करेगा वो सफल होगा और जो पहले किया था वो असफल है इसका तो कोई पैमाना नहीं। बस इस बहस में दोनों के मध्य तनाव हो गया। मेरी अच्छाई लगाओ या बुराई लेकिन मैं हमेशा खामोश हो जाता हूं मेरा विजन होता है कि गुस्से में कही बात कभी कभी ऐसी चुभ जाती है कि उम्र भर की रिश्ते में खटास बन जाती है। बस मेरी पत्नि को लगता है कि मैं समस्याओं से दूर भागता हूं। उनका सामना नहीं करता जबकि मुझे लगता है कलह ही वो विषय है जिसमे पीछे हट जाना सभी उपायों से बेहतर है।  
कल की वो लड़ाई उसके मन में ऐसा गुब्बार बनती रही कि उसके डिप्रेशन को दुबारा घुटन ने ट्रिगर कर दिया। मैंने माहौल सुखद बनाने हेतु कोशिश की और कहा की बच्चों का भविष्य उनकी शिक्षा, केयर और सुविधाओं से बनेगा न कि किसी पूजा पाठ से, बस यह बात सुनते ही उसने मुझे पिछले 14 वर्षों के सारे जख्मों को कुरेद कुरेद सुनाया और डिप्रेशन की अधिकता के कारण शाइवरिंग (कंपन) करने लगी। नेट पर उपाय ढूंढने के पश्चात देखा कि गर्माहट अर्थात पैरों के तलवे की मालिश या गर्म पानी पीने से आराम मिल सकता है। अब इतने क्रोध में पानी तो उसने पीना नहीं था। मेने उसके मना व बार बार पैर झटकने के बावजूद मालिश शुरू कर दी। 15 मिनट की मसाज के बाद कंपन में आराम आया। 
अब कोई समझाए इस घटना में दोष कहां था कहां इतना बड़ा मसला था कि अपनी सेहत को ही खराब कर लिया तथा दोनों की मानसिक अवस्था कमजोर हुई वो अलग, भावनाओं के ये दौर इंसान को इतना बेबस कर देते ही कि अगर थोड़ा भी दिमाग ज्यादा उत्तेजित हो जाए तो कोई भी अप्रिय घटना को बढ़ावा मिल जाता है। मेरी पत्नि की मानसिक अवस्था के लगभग पिछले साल से ज्यादा ही खराब होने के कारण मेरा भी जीवन से बिलकुल विश्वास उठ गया है। पूरी निष्ठा व मेहनत से परिवार के लिए दिन रात झूझने के बावजूद भी जब केवल तिरस्कार ही मिले तो मन व्यथित हो जाता है। असली वजह वर्तमान पीढ़ी में सहन शक्ति का कम होना तथा त्याग की भावना का कम हो जाना है। रिश्तों में अगर लम्बा चलना होता है तो समय समय पर किसी न किसी को पिसना ही होता है। कमाल की बात है हम केवल संतान के आगे तो झुक जाते है बाकी सभी रिश्तों में टकराव ले आते है। कहीं न कहीं हम सभी बुरे है क्योंकि हम निज स्वार्थ में इतने अंधे हो जाते है दूसरों के लिए कब तकलीफ बन गए हमे खुद नहीं पता चलता और रिश्तों में गहरी खाई हो जाती है। 

रविवार, 5 फ़रवरी 2023

पेड़ पौधों से कर प्यार

पेड़ पौधों से कर प्यार
मनु सांसों का कर्ज उतार

जीवन बना है जिस मिट्टी से
आखिर उसमे ही मिल जाना है
जीवन भर तुझे मिट्टी का ही खाना है
सहेज ले धरा कर खुद पर उपकार

पेड़ पौधों से कर प्यार
मनु सांसों का कर्ज उतार

गुरुवार, 5 जनवरी 2023

प्रेम की कीमत

यूं आसान नहीं प्रेम, प्रेम देखा जाए तो बहुत कुछ छीन लेता है तो बहुत कुछ सीखा जाता है

पहला पड़ाव

किसी बस स्टॉप/कॉलेज/दफ्तर/ट्रेन/पार्क में वो अक्सर आती थी जब पहली बार देखा था तो पहली नजर में ही सीनें में उतर गई, और ऐसी लत बन गई, रोज घंटों तक उसके आने का वक्त पता होते हुए भी पहले से इंतजार करना, जाने के बाद घंटों तक आहें भरना। उसका किसी और बात से हंसना और दिल का गदगद हो जाना। प्यार का वो अफसाना खुद से जुदा हो जाना। गहराई नही नापी जा सकती उन लम्हों की जब किसी से यूं प्यार होता है। सब छोड़ इंसान उसकी चाहत में डूब जाता है।

कुछ मोहब्बत करने वाले इसी पड़ाव तक रह जाते है और उलझी पहेली जैसी यादें लेकर उम्र गुजार देते है।

दूसरा पड़ाव

पहले पड़ाव के बाद शुरू होती है दूसरे पड़ाव की कहानी, अब इंतजार से बात आगे बढ़ने लगती है, कामकाजी वजहों से उनसे बात होने लगती है, कुछ नही कह पाते पर एक दूसरे की हदों से ज्यादा मदद करना और साइड लेने के सिलसिला शुरू हो जाता है। कभी कभी गलती से दो चाय की प्यालियां भी एक साथ हो जाती है। फिर दौर शुरू होते है गलत फहमियों के, किसी और के साथ उनका हंसना दिल को कचोट जाता है, एक दो दिन उनसे बात करने का मन नहीं करता और उनसे नाराजगी दर्शाता है, फिर इश्क का पारा जाने अंजाने जोर करता है तो वही दौर फिर शुरू हो जाता है एक दूसरे की ख्वाहिशों को अपनाने का, उसकी छोटी छोटी बातों को ध्यान रखना, उसकी पसंद नापसंद को अपनी पसंद में ढाल लेने का, और इस पड़ाव का बेहतर पल होता है कि उन दोनों को इतना पता नही होता लेकिन शहर में खबर आग की तरह फेल जाती है उनके इश्क की, क्योंकि उनको तो जाहिर करना होता नहीं, पर दुनियां उनकी नजरों को रोज पढ़ कर, नुक्कड़ वाली ख़बर का अहम हिस्सा बना देती है। 
इस पड़ाव पर अक्सर वो लोग छूट जाते है जिनका या तो शहर बदल जाता है, या उनके काम ।

तीसरा पड़ाव

दूसरे पड़ाव के दौर के बाद अचानक कभी कोई गम ऐसा आता है तो एक दूसरे के सामने वो असहाय से हो जाते है और ऐसे कमजोर वक्त जब वो एक दूसरे का साथ निभाते है तो उस वक्त जो लगाव पैदा होता है उसकी भीनी भीनी खुशबू दो दिलों को एक कर देती है। खुलकर वो दिल एक दूसरे के सामने बेपर्दा कर देते है। ऐसे पल बेहद नाजुक हो जाते है। यहां दोनों में वो डर पैदा हो जाता है कहीं हमसे कोई गलती न हो जाए और हम सामने वाले को खो न दें। प्रेम की चर्म सीमा होती है तीसरा पड़ाव, यहां एक दूसरे की रूह में उतर जाते है प्रेम करने वाले, उन्हें एक दूसरे के सिवा जमाने में कुछ नजर नहीं आता, सिवाए एक दूसरे को प्रेम करने के

इस पड़ाव में अक्सर वो रिश्ते छूट जाते है जिनका सामाजिक भेद के कारण मिलन संभव नहीं हो पाता, और इस मोड़ पर जो रिश्ता छूटता है वो ताउम्र एक खलिश बन यादों में बस जाता है और बार बार ये एहसास करवाता है कि काश ऐसा हो जाता काश हम ये कदम उठा लेते काश....बन रही जाती है भावनाए।

चौथा पड़ाव

इश्क का सबसे बड़ा इम्तिहान वाला पड़ाव है इश्क रूहों में उतर जाने के बाद, जिस्मों की आड़ में लिपटने को आतुर रहता है रोकती है तो बस उन्हें वो तंग निगाहें या सामाजिक शिक्षा जो उन्हें बचपन से बेड़ियों की तरह पहना दी जाती है कि ये किया तो वो गलत हो जायेगा ये गलत हो जायेगा। प्रेम को इज़्जत के भंवर में उलझा दिया जाता है। इस पड़ाव को सिर्फ वही पार कर पाते है जो या तो सामाजिक शिक्षा को कभी गंभीरता से नहीं लेते या जिन्होंने उच्च शिक्षा ग्रहण करके उतना बड़ा ओहदा मिल चुका होता है कि समाज उनके निजी जीवन पर प्रश्न करने की बजाए उनकी कामयाबी को नतमस्तक हो जाता है। पड़ाव पार करने के बाद जब जिस्मों की दीवारें लांघ ली जाती है तो उसके बाद प्रेम का असली चेहरा सामने आता है या कहूं तो सामने आता है कि वो प्रेम था या आकर्षण, यह इस पड़ाव में तय हो पाता है। जो कमजोर होता है प्रेम में वो जिस्मानी जरूरतों के बाद दूसरे को तन्हा छोड़ कर हमेशा के लिए सीने में नासूर जख्म बन कर दूसरे के लिए प्रेम को महज भ्रम की तस्वीर जहन में छोड़ जाते है। और जो साथ रहता है वो जिम्मेदारी से उम्र भर के लिए खूबसूरत रिश्ता बन जाता है। विश्वास की गहरी नींव उनके रिश्ते में मजबूती ले आती है। 

पांचवा पड़ाव
चार पड़ाव से गुजर गया जो पांचवा पड़ाव उसकी जिंदगी में बस शुद्ध प्रेम और समर्पण ही लाता है, उनके जीवन में एक दूसरे की बेहतर समझ और एक दुसरे का अनमोल साथ होता है। वो प्रेम के आदर्श बन जाते है। 

मैं इतना कहना चाहूंगा कि नफरतों को जीवन में जगह मत दीजिए, गलती सब से होती है, भाव से इंसान को पहचानना सीखिए, स्वभाव का पहली नजर में पता चल जाता है, कभी अपने स्वार्थ में किसी को न परखिए, एक सामरिक नजर से इंसान को जानिए और प्रेम से रहे, किसी के लिए द्वेष आपको ही जलाएगा एक बदनीयत इंसान बनाएगा। प्रेम रखोगे दिल में तो आप खूबसूरत व्यक्तित्व के इंसान बनोगे और सदा आंतरिक खुशी के मालिक बन जाओगे। 


सोमवार, 26 सितंबर 2022

रूह से रूबरू

बहुत हो गई दुनियाँ की बातें कभी कुछ खुद से भी पूछ लिया कीजिये, क्या चाहिए था तुम्हे और क्या चाहने लगे हो तुम। एक आसमान के परिंदा थे और पिंजरे की बन कर रह गए। 
मैं नही जानता पर स्कूल से ज्यादा मुझे कहानियों की किताबें पढ़ने का शौक था। और जाने अनजाने दिल की बातें दिल मे रखने की वजह से , बोझ बढ़ने लगा तो दिल की बातों को कागज पर उतारने लगा। और तब से आजतक लिखने के माध्यम तो बदल गए पर लिखता गया। और इसका सबसे बड़ा फायदा हुआ कि खुद को दुनियाँ को समझने का मौका भी मिला। जब आप खुद के लिखे को पढ़ते है तो पता चलता है कि आपके आसपास जो चल रहा होता है वो आपको कितना प्रभावित करता है। 

नफ़रत भी खूब आई इस दिल में और मोहब्बत भी खूब, लोग आते है जिन्दगी में जब उन्हें आपकी जरूरत होती है। और जब उनका वो खालीपन कहीं और पूरा हो जाता है तो वो आपको छोड़ जाते है। पहले बुरा लगता था पर धीरे धीरे समझ आया कि जीवन में निरन्तरता के लिए बदलाव आवश्यक है। इस बुरा लगने की वजह से मैने जीवन मे काफी अवसर गंवाए, बीएससी के लिए शामली जाना था प्लस टू के बाद मगर जा नही पाया पारिवारिक माहौल को  छोड़कर। फिर गुरुग्राम में अच्छी नौकरी माँ के बीमार होने की दुहाई पर। और ऐसा बहुत बार किया मैने जीवन मे लगाव की वजह से बहुत कुछ खो दिया। और मैं समझता था सब ऐसे है पर धीरे धीरे समझ मे आया कि हम सब मुसाफ़िर है कोई आ रहा है कोई जा रहा है। बस ये बात समझने में मेरी जिन्दगी बीत गई। 
ख़ैर मैं तो यही कहना चाहूंगा कि अपनी रूह को कैद मत कीजिए वही काम कीजिये जिसमें आपको सकूँ मिलता हो। लोग आपको प्रभावित करने की कोशिश करते है उनकी इच्छाओं के अनुरूप, मगर आपने खुद की सुननी है और जो आपको सही लगता है वही करना है। बस हर फैसले में इतना ध्यान रखना चाहिए कि किसी के हितों का नुकसान नहीं होना चाहिए। अपने सभी रिश्तों को इतना स्पेस देना चाहिए कि आप किसी पर बोझ न बनो। हालांकि इसका थोड़ा नुकसान ये है कि कुछ रिशतें बोझ में लगाव महसूस करते है पर फिर भी उन्हें आजाद रखने की जिम्मेदारी आपकी होनी चाहिए। रूहें जिस्म में एक उम्र तक ही कैद अच्छी लगती है हमेशा के लिए नहीं। 

चुपके से रोया वो

चुपके से रोया वो
आँसू नही थे आँख में
पर नमी बहुत थी

कहने को तो सब थे
दिल की समझे कोई
वो कमी बहुत थी

चुपके से रोया वो
मजबूत थी शख्सियत तो
पर दिल में नरमी बहुत थी

किसे कहता चोट कहाँ थी
जब मरहम वाले कातिल हो
फिर भी चुपके से रोया वो
अपनों में गैरों से निशानी जो थी

हर दूसरी रात भीग जाती है पलकें
किस से दोष दें किसे अपना कहें
जब साँस ही न जिस्म में रहें

चुपके से रोया वो
बन्द दीवारों में
रात के अँधियारों में
उदास गलियारों में
चुपके से रोया वो...



कड़वे शब्द बोलता हूँ